Varat Katha

चंपावती नगरी में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें लुम्पक नामक बड़ा राजकुमार महापापी था। वह परस्त्रीगमन, वेश्यागमन और अन्य कुकर्मों में लिप्त रहता था। राजा को जब उसके पुत्र के कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे राज्य से निकाल दिया।

लुम्पक वन में जाकर चोरी करने लगा। रात में वह नगरी में लौटकर चोरी करता और लोगों को परेशान करता। धीरे-धीरे पूरी नगरी भयभीत हो गई। लुम्पक वन में जानवरों को मारकर खाता था।

एक दिन पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्पक वस्त्रहीन होने के कारण ठंड से ठिठुर गया। अगले दिन एकादशी को सूर्य की गर्मी से उसे होश आया। भोजन की तलाश में निकला, परंतु जानवरों को मारने में असमर्थ था।

वह पेड़ों के नीचे गिरे फल उठाकर पीपल के वृक्ष के नीचे ले आया। भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे। लुम्पक ने फल भगवान को अर्पित कर कहा, “हे भगवान! यह भोजन आप ही ग्रहण करें।”

उस रात दुःख के कारण उसे नींद नहीं आई। उसके व्रत और जागरण से भगवान प्रसन्न हुए और उसके सभी पाप नष्ट हो गए।

अगले दिन एक सुंदर घोड़ा अनेक वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ। आकाशवाणी हुई कि “हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तुम्हारे पाप नष्ट हो गए। अब तुम अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त करो।”

लुम्पक अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण कर अपने पिता के पास गया। राजा ने उसे राज्य सौंप दिया। लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा।

उसका परिवार भगवान नारायण का भक्त हो गया। वृद्ध होने पर लुम्पक ने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वन में तपस्या की और अंत में वैकुंठ प्राप्त किया।

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