प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक क्रूर बहेलिया निवास करता था। वह अपनी पूरी जिंदगी हिंसा, मद्यपान, झूठ, लूट-पाट, छल-कपट जैसे बुरे कर्म करते हुए व्यतीत कर रहा था। अंतिम समय निकट आते ही उसे यमदूत दिखाई देने लगे, जिससे वह समझ गया कि उसका अंत निकट है। बहेलिया जिंदगी भर निर्दोष पशु और पक्षियों की हत्या करता रहा, मगर वह अपनी मौत से हमेशा डरता था। क्रूर बहेलिया मृत्यु भय से भयभीत स्थिति में महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और उनसे दया याचना करने लगा।
महर्षि अंगिरा को बहेलिया पर दया आ गयी और उन्होंने उसे पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का व्रत करने का आदेश दिया। बहेलिया ने पूरी श्रद्धा भाव से इस एकादशी का व्रत किया। जिससे बहेलिया के सभी पाप नष्ट हो गए और ईश्वर की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।