महाभारत काल के समय पाण्डु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि- हे अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो।त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गये। देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। इसके बाद मैंने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया। दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया।
मैंने राजा बलि से कहा कि, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा।
परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।